क्या हुआ आदर्श गांव का

बात दरअसल यह एक गांव को आदर्श बनाने का यह दौर पिछले दो दशक से चल रहा है । सरकार नए नाम से योजना प्रारंभ करती है गांव के नाम बदलते हैं लेकिन गांव की तस्वीर नहीं ।गांव को चयन भी विधायक और सांसद ही अपनी पसंद से करते हैं । बाद में पता नहीं क्या हो जाता है कि विधायक कार्य करना पसंद नहीं करते हैं । यही कारण है कि आदर्श गांव भी मूलभूत सुविधाओं को मोहताज हो रहे है।
चिंताजनक तथ्य यह है कि इन आदर्श गांव में विधायक तक कभी कभार ही पहुंचे । इन गांवो में कितने विद्यार्थी पढ़ाई से वंचित है, आंगनवाडी में कितने बचे अभी भी कुपोषित हैं , जननी सुरक्षा योजना का लाभ घर-घर पहुंच रहा है या नहीं, उज्जवला योजना के चूल्हे,मनरेगा की मजदूरी, स्कूल में शिक्षक, अस्पताल में चिकित्सक और सुविधा को लेकर विधायक , सांसदों को भी जानकारी नहीं है। योजनाएं सरकार बनाती है लेकिन उन पर अमल की मंशा जनप्रतिनिधियों में हो यह भी जरुरी है। इन आदर्श गांव में विधायकों का रात्रि ठहराव माह में एक बार तो किया ही जाना चाहिए था ताकि लोगों के साथ बैठकर बात कर हो सके।  प्रदेश में सरकार का कार्यकाल पूरा होने को जा रहा है। सरकार को इस बात की समीक्षा करनी ही चाहिए कि कितने विधायक ने सपनों का गांव बना दिया। जिन जनप्रतिनिधियों ने अपने 4 साल में एक गांव को भी आदर्श नहीं बनाया उनके कार्यकाल पर भी सवालिया निशान लगता है।
सांसद और विधायकों के आदर्श गांव घोषित कर सरकार ने मंशा जाहिर की थी कि इन गांव में विकास तो होगा ही ऐसे ही आदर्श व्यवस्थाएं भी कायम होगी, जो दूसरे गांव के लिए मिसाल होगी। इस सब के विपरीत हकीकत में ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है। सरकार की नियमित विकास योजना की राशि को व्यय बताकर दर्शाया जा रहा है कि गांव को आदर्श बनाया गया है। प्रदेश के समस्त विधायकों और सांसदों ने आदर्श गांव घोषित किए। इतने गांवों का कायाकल्प प्रदेश मे बड़ा महत्व रखता है।
हालही में नीति आयोग के ceo अमिताभ कांत ने राजस्थान को लेकर देश के विकास में प्रश्नचिंह लगाए इस से साफ है कि नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार देश में विकास के लिए राजस्थान रोड़ा साबित हुआ है। हालांकि राजस्थान के अलावा और भी राज्यों की देश के विकास में उपरोक्त भूमिका रही है। मजे की बात यह कि ये सभी राज्य बीजेपी शासित है। समय कम है जात पात में ना उलझे। संगठन को निर्णय जल्द ही करना चाहिए वैसे भी बहुत देर हो चुकी है। बात यह भी आइने की तरह साफ है कि तथाकथित आदर्श गांव भी सबक सिखाने को लालायित है।

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