फोन पर जाति सूचक टिप्पणी करना अपराध नहीं —हाईकोर्ट


फोन पर जाति सूचक टिप्पणी करना अपराध नहीं —हाईकोर्ट

छोटा अखबार।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि फोन पर जाति सूचक टिप्पणी करना अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं है। न्यायालय सूत्रों के अनुसार जस्टिस हरनेश सिंह गिल की एकल पीठ ने 14 मई को अपने फैसले में कीा है कि इस तरह की टिप्पणी का मतलब शिकायतकर्ता को अपमानित करना नहीं है क्योंकि ऐसा सार्वजनिक तौर पर नहीं किया गया।
हरियाणा में कुरुक्षेत्र के दो लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए जस्टिस गिल ने कहा है कि जनता की नजरों से दूर इस तरह की टिप्पणी करना शिकायतकर्ता को अपमानित करने की इच्छा नहीं दिखाती है। यह तथ्यात्मक रूप से अपराध की श्रेणी में नहीं आता जिसका एससी/एसटी अधिनियम के तहत संज्ञान लिया जाए।

जस्टिस गिल ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि इस अधिनियम के तहत यह जरूरी है कि आरोपी ने एससी/एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति को अपमानित करने के उद्देश्य से डराया धमकाया हो। ऐसा तभी माना जाएगा जब इस तरह की टिप्पणी सार्वजनिक स्थल पर आम लोगों की मौजूदगी में की जाए।
अदालत ने कहा है कि एक बार जब यह मान लिया गया है कि यह कथित बातचीत मोबाइल फोन पर हुई और आमजन के बीच नहीं हुई और न ही इसे किसी तीसरे व्यक्ति ने सुना है। ऐसी स्थिति में जातिसूचक टिप्पणी के प्रयोग के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसा सार्वजनिक रूप से कहा गया।
मामला 26 अक्टूबर, 2017 का है जिसमें दो लोगों पर आईपीसी और एससी/एसटी अधिनियम के तहत गांव के सरपंच को जान से मारने की धमकी देने और फोन पर जातिसूचक गालियां देने का मामला दर्ज कराया गया था। मामले में निचली अदालत ने 9 मई, 2019 को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपराध निर्धारण का आदेश दिया था। जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी।


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